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सुमन शेखर की कविताएँ
बहुत आसानी से गुम हो जाती है हँसी
हवा मे डूब जाती है कोई चीख
हमारी देह क़ब्र का स्पर्श लिए फिरती रहती है


रुपेश चौरसिया की कविताएँ
मैंने नींद में धोखे से
ख्वाब देख लिया था
नींद ऐसे टूटी जैसे किसी ने
ज़ोरदार तमाचा लगाया हो


अमित तिवारी की कविताएँ
चारों तरफ़ सतत निर्माण की खट-खट
बीच-बीच में नारे और रैलियाँ
कुछ भी ठीक से उबाल नहीं उठा पाता


ललन चतुर्वेदी की कविताएँ
कितनी वस्तुएं मिलकर भरतीं हैं एक मूर्ति में सौन्दर्य
यह हमारी दृष्टि की सीमाएं हैं कि हम देख नहीं पाते संपूर्ण




जय प्रकाश सिंह की कविताएँ
वह मानती थी कि हर अच्छी चीज़ को खिलना ही चाहिए
कि हर अच्छी चीज़ वितरित होनी चाहिए


चंद्रेश्वर की कविताएँ
जब करती हो इंतज़ार मेरा
तो उसमें शामिल ख़ालीपन
बनाता है मुझे सफ़र में
कुछ असहज


राग पूरबी : शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ
जिन्होंने
हमें उजाले बख़्शे
वे हनेरों के
ब्योपारी निकले




शिवांगी गोयल की कविताएँ
बेटियाँ अंतिम संस्कार के दिन आ पाती हैं
अपने ससुराल से लौटकर
बस अंतिम प्रणाम कर पाती हैं
और माँ के साथ बैठकर रो पाती हैं।












रति सक्सेना की कविताएँ
माँ कहती थीं कि चीटियां सधवा होती हैं
मुझे मालूम नहीं माँ के विश्वास का आधार क्या था
क्या उन्होनें कभी चींटी के हाथों में
चूड़ियां देखीं






चंद्रमोहन की कविताएँ
मैंने मालिकों द्वारा डस्टबिन में फेंकी हुई
कलमों को उठाकर
चिथड़े पन्नों पर
जस का तस छाप दिया
जैसा मैंने जीवन जीया।
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