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महमूद दरवेश की कविताएँ
हम भी होते अंजीर के वृक्ष की पत्तियां, अथवा एक उपेक्षित मैदान के पौधे ताकि महसूस कर पाते मौसम का बदलना


मोहन सिंह की कविताएँ
बर्फ़ गिर रही है...
पर इस बार इसके फाहे
रुई की तरह,
स्त्री के ओठों की तरह
नर्म, निग्घे और कोमल नहीं हैं


नाई की दुकान (नॉर्वेजियन कहानी)
आखिरकार मैं नाई की दुकान तक पहुँच ही गया। दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुआ और यह देखकर चकित रह गया कि बीते दिनों में दुनिया कितनी बदल गई




अनिल चावड़ा की कविताएँ
जिनके पेट में दावानल जला है
ऐसे भूखे लोगों का
स्वाद से भला क्या लेना-देना?


मेरी ओलिवर की कविताएँ
चीज़ें, चीज़ें, कितनी चीज़ें... आग लगा दो इन सब में। जल जाएँ सारी चीज़ें। इन सबको मिला कर जो आग बनेगी, वह कितनी ख़ूबसूरत होगी।


फ़ोरुग फ़रुख़ज़ाद की कविता
जीवन शायद रति के दो क्षणों के मध्य के
मादक विश्राम में सिगरेट का सुलगाना है


लखमीचंद की रागिनियां
पीस पकाकर खिलाना, दिन भर ईख निराना
साँझ पड़े घर आना, गया सूख बदन का खून
निगोड़े ईख तूने खूब सताई रे


केन का मेमना (इंडोनेशियाई कहानी)
धारा उसे दक्षिण की ओर बहा ले गई और स्वतंत्र होने की खुशी में वह चोट पहुँचाती लहरों और ठंडी हवा को भूल गया।


जीन-बैप्टिस्ट ताती-लुटार्ड की कविताएँ
आदम के बेटों के सिर पर जंग आ चुका है
और मैं कफ़न ओढ़कर सोऊंगा






चूहेदानी, उर्दू कहानी
दूसरों के बिल खोदकर अपने घर बसाएंगे तो और क्या होगा। ये तबाही हमने अपने हाथों ही तो बुलाई है।


फिलिस्तीनी बच्चे : कुछ कविताएँ
हम यहाँ रहते हैं, अपने ही मुल्क के अंदर लेकिन मुल्क से निष्कासित


जापान की पगडंडियों पर बाशो, हर्न और बोर्गेस के पदचिह्न
हिगाशी सुझाव देती हैं कि हम अपनी आँखें बंद कर लें और हमें अपने चेहरे पर हवा का स्पर्श महसूस होता है और कौओं की काल्पनिक बातचीत सुनाई देती है


नाओमी शिहाब नाए की कविताएँ
ख़ुशी पड़ोस वाले घर की छत पर गाती हुई उतरती है
और जब चाहे अदृश्य हो जाती है।
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