top of page


दीपक सिंह की कविताएँ
माँ,
मैं नहीं बचा सकता तुम्हारे बच्चों को मिसाइलों से


सुमन शेखर की कविताएँ
बहुत आसानी से गुम हो जाती है हँसी
हवा मे डूब जाती है कोई चीख
हमारी देह क़ब्र का स्पर्श लिए फिरती रहती है


रुपेश चौरसिया की कविताएँ
मैंने नींद में धोखे से
ख्वाब देख लिया था
नींद ऐसे टूटी जैसे किसी ने
ज़ोरदार तमाचा लगाया हो


अमित तिवारी की कविताएँ
चारों तरफ़ सतत निर्माण की खट-खट
बीच-बीच में नारे और रैलियाँ
कुछ भी ठीक से उबाल नहीं उठा पाता


ललन चतुर्वेदी की कविताएँ
कितनी वस्तुएं मिलकर भरतीं हैं एक मूर्ति में सौन्दर्य
यह हमारी दृष्टि की सीमाएं हैं कि हम देख नहीं पाते संपूर्ण


पद्मनाभ गौतम की कविताएँ
खाद-पानी डालकर
उगाई नहीं जा सकती आदमियत,
इसके बीज नहीं होते


जय प्रकाश सिंह की कविताएँ
वह मानती थी कि हर अच्छी चीज़ को खिलना ही चाहिए
कि हर अच्छी चीज़ वितरित होनी चाहिए


चंद्रेश्वर की कविताएँ
जब करती हो इंतज़ार मेरा
तो उसमें शामिल ख़ालीपन
बनाता है मुझे सफ़र में
कुछ असहज


राग पूरबी : शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ
जिन्होंने
हमें उजाले बख़्शे
वे हनेरों के
ब्योपारी निकले


आसित आदित्य की कविताएँ
नदियाँ धीरे धीरे मिटती हैं
इतनी धीरे कि मछलियाँ नहीं मरती


शिवांगी गोयल की कविताएँ
बेटियाँ अंतिम संस्कार के दिन आ पाती हैं
अपने ससुराल से लौटकर
बस अंतिम प्रणाम कर पाती हैं
और माँ के साथ बैठकर रो पाती हैं।


ऋत्विक् की कविताएँ
सफ़ेद सूर्य
हज़ारों लाल चाँद
उफ़! ये स्वप्न


अणु शक्ति सिंह की कविताएँ
नया है हर शिशु का अपनी नज़र से दुनिया देखना


शैरिल शर्मा की कविताएँ
प्रतीक्षा
एक पेड़ है
जो हर मौसम में
अपनी छाल उतारता है।


नवनीत पाण्डे की कविताएँ
डर गया
कहीं
अपने सवालों पर
मुझे ही कटघरे में न खड़ा कर दिया जाए


शंकरानंद की कविताएँ
सिर्फ़ नाम भर रख देने से कोई
उस जैसा नहीं हो जाता


रति सक्सेना की कविताएँ
माँ कहती थीं कि चीटियां सधवा होती हैं
मुझे मालूम नहीं माँ के विश्वास का आधार क्या था
क्या उन्होनें कभी चींटी के हाथों में
चूड़ियां देखीं


भूपेंद्र बिष्ट की कविताएँ
शब्दों के तमाम दीगर अर्थों का भी संज्ञान लेना चाहिए
ताकि सनद रहे।


सुजाता गुप्ता की कविताएँ
जड़ें दिमाग़ से होते हुए
गरदन, छाती, पेट तक
बढ़ती ही गईं।


चंद्रमोहन की कविताएँ
मैंने मालिकों द्वारा डस्टबिन में फेंकी हुई
कलमों को उठाकर
चिथड़े पन्नों पर
जस का तस छाप दिया
जैसा मैंने जीवन जीया।


प्रभात की कविताएँ
अब इससे कैसे कहे स्कूल आने के लिए
जिसकी बग़ल में रो रहा है नवजात


नेहा नरूका की कविताएँ
आज़ादी बड़ी मुश्किल शै है इतनी मुश्किल कि जीवन का रस भोगते हुए वह कभी नहीं मिल सकती उसके लिए लड़ना पड़ता है


अमरनाथ कुमार की कविताएँ
पिता के हँसने से
मैं समझ जाता हूँ
देश की अर्थव्यवस्था...।


विष्णु नागर की कविताएँ
भिखारी ने
चार लोगों से
चाय के पैसे मांगे
और खाना खा लिया


आदर्श भूषण की कविताएँ
गिलहरियों के बच्चे गिलहरियों से ज़्यादा गिलहरी थे


जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविताएँ
जीवन का गणित बिल्कुल भिन्न है अंकगणित से
यहाँ चाहे जितना कर लीजिए कोशिश
दो दूनी चार नहीं हो पाता है


मदन कश्यप की कविताएँ
मुर्दाघर में हर रात चुपके से आ जाएगी चाँदनी
मेरे घावों को सहलाएगी
कई दिनों तक कई कोणों से मुझे काटा जाएगा
हर कटाई के बाद मेरे भीतर से न
bottom of page