अमित तिवारी की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Apr 7
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अब इतना भर कहना काफ़ी नहीं रह गया है
अब इतना भर कहना काफ़ी नहीं रह गया है
कि मैं पहचानता हूँ तुम्हारे दुःख
अब कूद पड़ना चाहता हूँ बहस में
और पुरज़ोर तरीक़े से ग़लत को ग़लत कहना चाहता हूँ
एक अकेली 'नहीं' लिए मजबूती से खड़ा रहना चाहता हूँ
मुस्कुराने की परिपाटी से कुछ दिन क्षमा लेकर
पूरे क्षोभ के साथ उठ कर चल देना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ कि तुम अगुआ बने एक-एक से हिसाब लो
और इस क्रम में सबसे पहले मेरी गर्दन पकड़ो
अब इतना भर कहना काफ़ी नहीं रह गया है
कि मैं तुम्हारा कवि हूँ।
मणिपुर कहाँ पड़ता है?
हाँ सुबह अब भी कुछ-कुछ कहती है
अख़बार हालाँकि बहुत कुछ नहीं कहते
दूर देश में
जो अब देश भी नहीं है
कोई ज़्यादा कुछ नहीं कहता
वहाँ चीख है, धमाके और अफ़रा-तफ़री
थोड़ी बहुत रुलाइयाँ हैं
ये मीम्स या रील्स के काम की नहीं
विभीषिका की ख़ास इंटरटेनमेंट वैल्यू भी नहीं
ट्रिगर करने वाले कॉन्टेंट को रिपोर्ट करो
हैप्पी थॉट्स! हैप्पी थॉट्स!
कुछेक ही ध्यान देते हैं इन पर
जैसे एनजीओज़ या स्टॉक इमेजेस वाले लोग
सुबह वहाँ अब पतिंगों के पुनर्जन्म का नाम है
वहाँ अख़बार छापने वाला
निश्चित ही अगला पैगंबर होगा
कुछ करोड़ लोगों को संतोष है
कुछ लाख लोगों की बर्बादी पसरती जाती है
इस पर कुछ हज़ार लोग जताते हैं
थपकी भरी आपत्ति।
मार्च 2024 की दोपहर
चार सौ कविताएँ लिखीं
और बहा दीं
ऊटपटाँग बिंब और शब्द संरचनाओं के खिलवाड़
प्रयोगधर्मी, प्रगतिवादी आदि-आदि
कोई मतलब नहीं है
कोई दिया नहीं जलेगा
एक चिंगारी तक नहीं फूटेगी
दया इस दुनिया में नहीं बची
चुटकुलों में सब दब जायेगा
"सॉरी, नहीं चाहिए, थैंक यू"
दु:ख अब उड़ती-उड़ती सूचना की तरह आता है
तीन सेकण्ड में असर पड़ना चाहिए
वरना स्क्रॉल डाउन!
आखिर एक अदने-से दिमाग की ग्रन्थियों से
कितनी संवेदना रिस सकती है?
ऊपर से चारों तरफ़ सतत निर्माण की खट-खट
बीच-बीच में नारे और रैलियाँ
कुछ भी ठीक से उबाल नहीं उठा पाता
इच्छाओं में कोई कमी नहीं आयी है
जैसे कि मैं अभी सोना चाहता हूँ
पलायनवादी होने की शर्म भी
इन इच्छाओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
महादेश
उत्सवधर्मिता में नाचता अकेलापन
खुले संवाद
ईमानदार विकल्प
साफ़ हवा-पानी
एक मजबूत आन्दोलन
प्रधानमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस
जंगल और जंगल की इच्छाएं
इतिहास और तथ्य
गिरोह मुक्त संपादक
अपराधों के सबूत
सिनेमा में दमित की जगह
कवियों में लज्जा
विश्वविद्यालयीय छात्रों मे निर्भीकता
एक नया ओरिजिनल मर्मांतक संगीत
प्रेम करने की जगहें
सरकारों पर चुटकुले
पाँच किलो राशन
दलिया, केरोसिन की कतार में लगा
यह महादेश
अभावों की कविता।
डरपोक प्रेमियों की कविता
थोड़े संकोच और बहुत सारे डर के बीच
मैं उसकी जीभ पर एक न कही जा सकी बात की तरह रुका रहा
एक संख्या की तरह जिस पर तिजोरी की लाज टिकी होती है
"कुछ शहर जल्द ही डूब जायेंगे" जैसे
एक बड़े और भयानक सच की तरह
और उस अपराध की तरह
जिसका दण्ड अपने साथ महानता लाता है
मैं विज्ञान-सा सशंकित रहता हूँ
एक कामनाहीन मंत्र की तरह
वह पूरे विश्वास से मुझे बुदबुदाती है।
आज मैं कोई काम नहीं करूँगा
आज मैं कोई काम नहीं करूँगा
मेज़ की अव्यवस्था से मुँह चुरा लूँगा
आवारा बिल्ली को पूरा दूध पी जाने दूँगा
कपड़ों से कहूँगा कि एक और दिन जलमग्न रहें
दफ़्तर से लूँगा छुट्टी और कोई वजह नहीं बताऊँगा
अखबार चोरी हो जाने दूँगा
प्रेम से माँगूँगा तिजहर तक की फुरसत
और मदन से निवेदन कि धूप में बैठें
ईश्वर से भी कहूँगा कि कहीं घूम आएं
और कम से कम किसी एक दंगे में प्रत्यक्ष भाग लें
प्रधानमंत्री का भाषण दिखा तो हँसूँगा नहीं
मिमियाते विपक्ष पर खिसियाना वैसे ही डाँड़ है
कविताओं से हाथ जोड़ूँगा
और कहूँगा कि थोड़ा गाँव-देहात की सैर करें
पनवाड़ियों, मोचियों और नाइयों के यहाँ बैठें।
फ़ोन भनभनाता रहेगा शासनाधिकार खोते पिता की तरह
धूप, संतरों और फूलों का लालच आज नहीं छू सकेगा मुझे
कोई गाली उकसा नहीं पाएगी
नहीं वेध पाएगी कोई ईर्ष्या
कोई वाहवाही नहीं गुदगुदाएगी।
आज सायास अँधेरे की शरण में जाऊँगा
वहाँ रज़ाई को धन्यवाद दूँगा, तकिये को भी
और एक आदिम आलस में लेटा-लेटा
बुढ़िया की तरह ऊँघने लगूँगा।
अमित तिवारी युवा कवि-व्यंग्यकार-अनुवादक हैं। देश भर के कई शहरों में भटकने के बाद अब नोएडा में रहना-सहना हो रहा है। अमित की कविताएँ सदानीरा, हिन्दवी, समालोचन, वनमाली कथा, कृति बहुमत, इंद्रधनुष, उर्दू, दैनिक भास्कर और युवा वाणी पर प्रकाशित हुई हैं। कई पत्रों और कविताओं के अनुवाद प्रकाशित। भारत भवन, भोपाल के कार्यक्रम 'दिनमान-2020' में कविता पाठ। 'रज़ा युवा 2024' में शामिल। ईमेल : amit.bit.it@gmail.com
हमारी तुम्हारी सबकी बात कहने वाली कविताएं। इनका अनायासपन सराहनीय है।
'आज मैं कोई काम नहीं करुॅंगा' इस कविता के लिए कवि को धन्यवाद। बधाई गोलचक्कर