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केन का मेमना (इंडोनेशियाई कहानी)

  • golchakkarpatrika
  • Feb 1
  • 14 min read

Updated: Feb 8



लेखक : किपांडजी कुसुमिन 
हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह


करणों स्वयं को सिर में गोली मार कर मर गया। दूसरी ओर राजप्रतिनिधि पेट्रस गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ था और जब वह अस्पताल में था, उसे सोचने के लिए समय मिल गया।


कितनी आसानी और स्वेच्छा से, हम दूसरों को — और स्वयं को — बिना किसी कारण बलिदान कर देते हैं।


ओल्ड टेस्टामेंट में एक कहानी है। केन*, एडम के बुरे बेटे, ने एक मेमने की बलि दी। उसने उसे काट डाला, टुकड़ों में बाँटा और जला दिया। बिना किसी बात के। ईश्वर को केन की बुराई से घृणा थी और उसे उसकी बलि से कुछ लेना-देना नहीं था। 


हम, केन की संतानें, वैसा ही करते हैं जैसा हमारे पूर्वज ने किया था। करणों केन के मेमने से बेहतर नहीं था। मानवीय हाथों ने उसकी सादगी, उसके विश्वासों, जीने के उसके कारणों और उसके भविष्य को उससे छीन लिया था। 


कोई आश्चर्य नहीं कि वह जीना नहीं चाहता था। कोई आश्चर्य नहीं कि उसने जीवन को इतनी आसानी से जाने दिया। यह सब कितना दुखद और व्यर्थ था। केन का मेमना।


लगभग तीन सप्ताह पूर्व उनके आने के स्वागत में बंदरगाह के सायरनों की आवाज़ें सुन पाने के लिहाज से वह काफी देर से सो कर उठा था। बात कानों कान फैल गई : “कार्तिक और मंगकारा ने सिंगापुर में लंगर डाल दिया था।”


जिस छोटे से व्यावसायिक गाँव में करणों पिछले सात महीनों से छिपा था, वहाँ हर कोई उसे जानता था।


हाल के दिनों में अँग्रेज़ी टोही नौकाएं असावधान होने लगी थीं। सिंगापुर में लोग ‘मुठभेड़’ से ऊबने लगे थे और उसे ‘काग़ज़ी शेर’ कह कर ख़ारिज कर देते थे। समुद्री किनारे के साथ-साथ चलते हुए करणों, दोनों श्वेत नौकाओं पर इंडोनेशिया के ध्वज को गर्व से फहराते हुए देख, स्तंभित रह गया।


“मुठभेड़ समाप्त हो गई, बच्चे,” डींग सांबरा ने अपने दरवाज़े पर खड़े-खड़े कहा।


“समाप्त? इस तरह? क्या ये सारी तकलीफ़ें किसी महत्वपूर्ण बात के लिए नहीं थीं?”


बिना एक भी शब्द कहे करणों जा कर बिस्तर पर गिर गया। फिर वह उठा और उसने दर्पण में अपने चेहरे पर नज़र डाली। उसने अपने घाव के निशानों के सफ़ेद ऊतकों पर हाथ फिराया और दर्पण को चकनाचूर कर दिया। डींग, वृद्ध व्यक्ति की भांति चुपचाप उसे देखता रहा। 


बेचारा करणों! उसकी रेजिमेंट ने उनके कमांडो वाले बिल्ले वापस ले लिए थे और उन्हें गुरिल्ला लड़ाकों के महत्वहीन पद के साथ एक वर्ष पूर्व पैराशूटों की मदद से सारावक में उतार दिया था।


इंडोनेशिया की सरकार ने सारावक जन मुक्ति सेना – जो चीनी कम्युनिस्टों का एक सिद्धांतहीन, महत्वाकांक्षी समूह था – को मलेशिया को बर्बाद करने हेतु सहायता देने का निर्णय लिया था।  घने जंगल में कई दिन भूखे रहने के पश्चात अंततः उनका उन दुश्मनों से संपर्क हुआ जिनकी तलाश उन्होंने अत्यंत मेहनत से की थी : ब्रिटिश छापामार। वह याद नहीं कर सका कि यह सब कैसे शुरू हुआ था, क्योंकि जब उनके घात लगा कर बैठने के स्थान पर नापाम* गिरा, वह घबरा गया था। वह जल रहे जंगल के कारण औरों से बिछुड़ गया था। जब उसे होश आया, उसकी लगभग समूची देह जलने के घावों से भरी हुई थी। पीड़ा उसकी हड्डियों की मज्जा तक जलाती हुई सी प्रतीत हो रही थी। अंततः उसकी समझ में आ गया कि वह कुचिंग के उत्तर के एक कैदी कैंप में था।


संहार की शुरुआत हुई। गोरखा सैनिकों, केन के बेटों ने, बीमार पशुओं की ईश्वर के समक्ष बलि दे डाली। शायद उनका ईश्वर, जो स्वयं की सहायता कर पाने में लाचार था, उन्हें यातना देने में आनंद की अनुभूति करता था। कुछ कारणों से करणों ने दृढ़ता से ज़िद की कि वह इंडोनेशियाई सेना का सदस्य नहीं था। उसकी बुरी हालत के बावजूद, उसके झूठ ने उन्हें और भी दुष्ट बना दिया। उन्होंने उसके पाँव एक साथ बांधे और उसे एक हेलीकॉप्टर द्वारा ज़मीन से ऊपर उल्टा लटका दिया।  उसके साथ क्रूरता के अन्य कृत्यों को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया गया, जब कि उसने अपने अन्य अधिक स्वस्थ मित्रों की अंतड़ियों को गुदा फाड़ कर बाहर निकाले जाते हुए देखा।


अकस्मात उसने सुना कि युद्ध विराम घोषित कर दिया गया था। कैंप का माहौल एकदम बदल गया। गोरखे अब दुनिया के सबसे अधिक मित्रवत लोग थे। आपातकालीन उड़ान पट्टी पर बेगार बंद करा दी गई। अब उन पर कोई नहीं चिल्ला रहा था।  शांति की घोषणा मात्र प्रतीक्षा की बात थी। चीनी कम्युनिस्टों ने सारी व्यवस्था को बिगाड़ना चाहा। करणों चूंकि पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो गया था, उन्होंने उसे सिंगापुर के एक मनोचिकित्सा अस्पताल भेज दिया। अच्छी देखभाल ने उसे शीघ्र स्वस्थ कर दिया। लेकिन वह अभी भी दुष्ट निकोलिम से घृणा करता था जो उसके लिए नव-उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी था।


युद्ध विराम रद्द कर दिया गया। जिस रात के बाद उसे सारावक वापस लौटना था,  उसने पहरे पर मौजूद प्रहरी का गला घोंट दिया और निश्चय करके अस्पताल के पीछे के समुद्री किनारे से दूर तैर गया।


धारा उसे दक्षिण की ओर बहा ले गई और स्वतंत्र होने की खुशी में वह चोट पहुँचाती लहरों और ठंडी हवा को भूल गया। पुनः पकड़े जाने की बजाय डूब जाने का दृढ़ निश्चय किए हुए, बिना यह जाने कि वह किस दिशा को जा रहा था, तैरता रहा।


जब भोर हुई, उसकी अर्धचेतन देह को एक प्राऊ (इंडोनेशियाई पाल नौका) में उठा लिया गया। वह मछलियों की गंध महसूस कर सकता था। संकेतक लालटेन बुझा दी गई थी। अस्पष्ट ध्वनियों और लहरों की आवाज़ों ने उसकी चेतना को सुस्त कर दिया।


मैंग्रोव के वृक्षों से घिरा मूंगे का द्वीप अपने आप में एक अलग दुनिया था। मछुआरों के पाँच परिवार और कई तस्कर किनारे पर बने घरों में रहते थे। दूर स्थित सिंगापुर को कोई आसानी से देख सकता था। उनके पूर्वज इस द्वीप पर कम से कम तीन शताब्दियों से रह रहे थे लेकिन वे अब भी इंडोनेशियाई थे।


अँग्रेज़ गश्ती दल कभी किसी को भी न पकड़ पाए। नाविक भाग कर छिप जाया करते थे। करणों कोई पहला गुरिल्ला लड़ाका नहीं था जिसकी उन्होंने मदद की थी।


जब भी वह सर्वाधिक पीड़ा में होता, कोई न कोई मदद के लिए उपस्थित रहता। उसने अस्पताल से बीस मीटर नीचे गोता लगाया था: अक्सर उसके सिर में पीड़ा होती थी और वह निरंतर उल्टी करना चाहता था। पीड़ा ने उसे कमज़ोर और विचित्र बना दिया था। वह नपुंसक हो गया था। उसका अंग संचालन बिगड़ गया था और मस्तिष्क इस तरह सुन्न हो गया था कि उसे स्वयं पर हँसी आती थी।


फिर भी उसने अपनी बेहतरी को स्वेच्छा से स्वीकार किया। यह किसी ख़ास कारण से था। “कोई भी बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता,” जनरल यानी ने कहीं एक बार ऐसा कहा था। 


डींग सांबरा ने उसे ईश्वर के संबंध में शिक्षा देनी शुरू कर दी। वह नमाज पढ़ने लगा और उसने क़ुरआन  का पाठ करना भी सीख लिया। उसमें बदलाव प्रारंभ हो गया था। उसका पक्षाघात जाता रहा था और वह अधिक एकाकी हो गया था, यद्यपि अभी वह अपने आसपास से अनभिज्ञ था। 


संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था, जैसे कि उसे होना चाहिए था। महान नेता की शपथ कि वे मलेशिया में दो करोड़ स्वयं-सेवक उतार देंगे, एक भौंडी बकवास थी। 


“तुम दुःखी लग रहे हो, मेरे बच्चे,” डींग ने करणों से कहा जब वह मंगकारा में फहरा रहे लाल-श्वेत ध्वज को घूर रहा था। 


“आप जानते हैं श्रीमान, मैं कितना निराश हूँ।”


“यह ईश्वर की इच्छा थी। उसके प्रति समर्पण रखो।”


“मैं नहीं समझ सकता कि ईश्वर इसका इस तरह से होना क्यों चाहते हैं। मेरा चेहरा विकृत हो गया है। मैं नपुंसक हो गया हूँ। मैं सोच नहीं सकता हूँ। मैं संभवतः शीघ्र ही मर जाऊंगा। सब कुछ बिना किसी बात के। बिना किसी कारण के।” करणों ने रेत पर थूका। 


“यह सब व्यर्थ नहीं गया। ईश्वर ने हमारी आँखें खोल दी।”


“क्या मतलब है आपका?”


“वह हमें मूर्खता के समक्ष सिर झुकाने से रोकना चाहता था। राष्ट्र ग़रीब है। हमारे ऊपर क़र्ज़ है। सामान्य जनता भूख से मर रही है। हर गोली जो हम चलाते हैं, अमेरिका अथवा रूस से बन कर आती है। क्या इसी तरह की तैयारी हम युद्ध जीतने के लिए करते हैं?” वृद्ध व्यक्ति रुका और दूर क्षितिज की ओर देखने लगा। 


“जनरल्स ने बमों का वायदा किया था। अब जो एकमात्र हथियार उनके पास हैं, वह हैं खोखले शब्द।”


“क्या मेरी तकलीफ़ें खोखले शब्द हैं?”


“तुम उस बकवास और मूर्खता के शिकार हो, जिसकी हमने लंबे समय तक पूजा की है।”


करणों ने सब कुछ सम्मानपूर्वक सुना और कुछ सीमा तक उसे सांत्वना भी मिली।


“मूर्खता समाप्त हो गई, मेरे बच्चे।” डींग ने करणों को अपने आप में डूबा हुआ छोड़ दिया और करणों को आश्चर्य हुआ कि अब वह क्या करेगा। वह द्वीप पर रह सकता था किंतु यह बाकियों के लिए ख़तरनाक होता। वह एक गुरिल्ला था। उसने अपने मुख्यालय जकार्ता वापस जाने का निर्णय लिया।


डींग सांबरा और मंगकारा का कप्तान पुराने मित्र थे। दस वर्ष पूर्व कप्तान तटरक्षक दल में था। डींग की तस्करी लगभग सदैव ही उसकी नज़रों से बच जाया करती थी। क्योंकि वह अपने समृद्ध यात्रियों की अहमकाना ज़रूरतों को पूरी करने में व्यस्त रहता था, इसलिए वृद्ध व्यक्ति का निवेदन आसानी से मान लेता था।


जब करणों गया तो डींग को अजीब महसूस हुआ। एक और व्यक्ति के चले जाने की बात जैसी बात से वृद्ध व्यक्ति का जीवन बहुत कठिन हो गया, फिर भी करणों ने उसे उसकी स्वयं की याद दिला दी। पच्चीस साल पहले उसने एक डच अधिकारी को KPM जहाज पर हुई लड़ाई में मार डाला था। सात दिन बंदरगाह की गोदी में रहने के पश्चात जहाज पर जापानियों द्वारा बमबारी कर दी गई थी और वह रियाऊ पहुंच गया था। वह वहाँ छः महीने रहा फिर सिंगापुर चला आया। करणों की भाँति उसने भी वापस लौटने का वादा किया था। वह कभी वापस नहीं गया, न ही उसने करणों के ऐसा करने की अपेक्षा की थी। 


तीन दिन बाद मंगकारा जकार्ता के तानजुंग प्रियोक बंदरगाह को जाने हेतु शांत कोजा कैनाल में चल रहा था। 


जब कस्टम अधिकारी आदेश दिखा रहे थे और सिंगापुर से लाए समान के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, करणों चुपचाप तट पर गायब हो गया। कोजा के वेश्यालय के पास उलार बाजार में उसने वह घड़ी बेच दी जो डींग ने उसे सौ रुपए के दस नोटों के बदले दी थी, और जिसे उसने पहली बार देखा था। जकार्ता बाईपास के पास उसने अपनी बैरक की ओर जाने वाली बस पकड़ी।


जब वह वहाँ पहुंचा, अँधेरा हो चुका था। इसने उसे थोड़ा संभ्रमित कर दिया। बैरक में मुश्किल से ही कोई परिवर्तन हुआ था सिवाय इस बात के कि सड़कें पक्की हो गई थीं और उन पर चमकदार नियॉन लाइट्स लग गई थीं। उसने किसी को आते हुए सुना और छिप गया। यह एक गर्भवती स्त्री थी, सार्जेंट मेजर करीम की पत्नी। 


“वह अच्छे कपड़े पहने हुए है। अभी ख़रीदे हुए, मैं कह सकता हूँ,” उसने निर्णय लिया। अकस्मात उसने सोचा कि वह क्यों छिप रहा था। क्या ऐसा उसके चेहरे के कारण था? वह अपनी मूर्खता पर हँसा। जब महिला की परछाई जा चुकी, वह उठा और अविवाहित सैनिकों के क्वार्टर (कक्ष संख्या B–37) की ओर चल पड़ा। जहाँ वह अपनी चीज़ें छोड़ गया था।


उसने एक के बाद एक कई मकान पार किए और अपने कदम तेज कर दिए। वह विवाहित सैनिकों के क्वार्टर से आती स्त्रियों, बच्चों और नवजातों की आवाज़ें सुन सकता था और आख़िरी मकान से आती एक रेडियो की आवाज़ भी। कल नायक दिवस है। दिन पूरी गरिमा के साथ मनाया जा रहा है।


अविवाहितों के क्वार्टर में कोई नहीं था। पहले भी युवा रात्रि जागरण की अनदेखी करते थे। वह लाउंज में एक कुर्सी पर बैठ गया, वही कुर्सी जिस पर वह मित्रों से बतियाने अथवा शतरंज खेलने के लिए बैठा करता था। उसके दरवाज़े पर किसी और का नाम था। कोई नया रंगरूट। वह नाम उसके लिए अपरिचित था।


खिड़की से झाँकते हुए वह एक व्यक्ति की तस्वीर देख सकता था जो अपनी कमर पर हाथ रखे उकडू बैठे अपने प्राणों की भीख मांगते एक कम्युनिस्ट के सामने खड़ा था। कपड़ों की अलमारी के दाहिनी ओर करणों एक वेस्पा स्कूटर को खड़े देख कर अचंभित रह गया। एकाएक उसने उस व्यक्ति का चेहरा खिड़की में देखा और परेड मैदान की ओर चल पड़ा, संगमरमर के उस स्मारक की ओर जिस पर रेजिमेंट के युद्ध में मारे गए सैनिकों के नाम लिखे थे। उसने वहाँ अपना नाम पढ़ा और कंपकंपा उठा। “12 दिसंबर, 1964, कॉरपोरल सुकरणों, सारावक में खो गए। IV स्क्वाड्रन, RAF के ऑपरेशन स्काई हॉक के दौरान प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर मृत घोषित।”


वह चकराया हुआ सा बैठ गया, मानो अभी-अभी वह किसी स्वप्न से जागा हो। जब वह खड़ा हुआ, उसके सिर में प्रश्नों की भीड़ सी लग गई। उसे क्या करना चाहिए? वह रिपोर्ट ग़लत थी। क्या उसे दावा करना चाहिए कि वह अभी जीवित है? यह बात उसके कमांडो होने के बचे खुचे गर्व को भी नष्ट कर देगी। वह गर्व चाहे कितना ही ध्वस्त हो चुका हो, वह उसे बनाए रखना चाहता था।


तो, जहाँ तक उसके परिवार और उसके मित्रों की बात थी, वह एक नायक था। यदि उन्हें पता चला कि वह अभी भी जीवित था तो वह सम्मान दया में परिवर्तित हो जाएगा, अथवा हो सकता है मज़ाक़ में। वह संघर्ष द्वारा प्राप्त वांछित बलिदान की जीती-जागती स्मृति था। जैसा कि डींग ने कहा था, मूर्खता और निठल्ली बकवास का शिकार।


तीन दिन पश्चात, मेजर सुयतनाम वकील और राजप्रतिनिधि पेट्रस सुजोनो से सैन्य कमांड कार्यालय में बात कर रहे थे और पेट्रस  प्रतिरोध कर रहा था कि सेना की क्रूरता उसे सामान्य नागरिकों को कम्युनिस्ट मान लेने की ओर ले जा रही थी। सैन्य अधिकारी धैर्य से स्पष्ट कर रहे थे कि यह समझने योग्य बात है कि उसके लोग थोड़े ‘उत्साही’ थे। मेजर की बग़ल में उसके नए चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट वस्तोमी और संवाद को लिखती हुई उनकी खूबसूरत सेक्रेटरी तिवि बैठे हुए थे। अकस्मात एक टॉमीगन लहराते हुए करणों भीतर दाखिल हुआ। 


वे खड़े हो गए। कमरा एल्कोहल की गंध और मौत की उपस्थिति से भर गया।


“कमांडर कहां है?” करणों ने तेजी से पूछा। उसकी आक्रामकता ने बस्तोमी की बोलती बंद कर दी।


सुयतनाम को तीखी निगाहों से घूरते हुए करणों चिल्लाया : “यह तुम हो? क्या तुम्ही ने उन हरामजादों को मेरे परिवार को मार डालने दिया था?”


“तुम कौन हो? तुम्हारी रेजिमेंट कौन सी है?” मेजर ने ठंडेपन से कहा। 


“मुझ से सवाल मत पूछो। मैं तुम सब को मार डालूंगा।” उसने हथियार का रुख सुयतनाम की ओर किया और उसके विकृत चेहरे को एक दुर्भावनापूर्ण भाव ने ढक लिया। 


उनके हृदय मानो तारों से कस दिए गए थे। उनकी आवाज़ नहीं निकल रही थी।


“मैं पहले इस बेवकूफ ऑफिसर को निपटाने जा रहा हूँ। बाकी सब जहाँ हो वहीं चुपचाप खड़े रहो।” वह आगे बढ़ा और अपना कमांडो चाकू अधिकारी की छाती पर रख दिया।


“चलो बताओ, तुमने कैसे उन्हें मेरे पिता और बच्चों को मारने दिया? बताओ मुझे, सूअर।”


राजप्रतिनिधि एकाएक उछल पड़ा मानों उसे घूंसा पड़ा हो। उसने आवाज़ पहचान ली। “करणों, क्या यह तुम हो, मेरे बच्चे? तुम अपने अंकल पीटर को नहीं भूल सकते।” वृद्ध आगे बढ़ा।


“पीछे जाओ। भाड़ में गए अंकल पीटर!”


वृद्ध पीछे चला गया।


“बताओ मुझे, शैतान, अन्यथा मैं अपने चाकू से तुम्हारे साथ वो करूंगा कि तुम फिर कभी कुछ कह न पाओगे।” करणों ने चाकू वापस अपनी बेल्ट में खोंस लिया। “मैं तुम्हें बस पाँच मिनट दूंगा। यह कितना अमानवीय था। तुमने कैसे यह सब घटित होने दिया?”


कमरे में सन्नाटा पसरा था। हवा के एक झोंके ने कमांडर की पेंसिल को फर्श पर गिरा दिया। बस्तोमी ने उस दराज की ओर देखा जिसमें पिस्तौल रखी हुई थी और निर्णय लिया कि कर्मचारियों द्वारा उत्पन्न परिस्थिति ने उसकी गति और सटीकता को प्रभावित किया है। उसने प्रार्थना की। सुयतमान रहस्यवादी बाह का अनुयायी था। वह शांति से नशे में धुत युवक के अपनी आंतरिक शक्ति द्वारा सहम जाने की प्रतीक्षा करता रहा। 


“तुम कुछ बोलते क्यों नहीं, कमांडर?” करणों चिल्लाया।


“क्या तुम पिए हुए हो करणों?” पेट्रस  ने कोमलता से पूछा। “कितनी बोतलें? अगली बार हम साथ साथ पी सकते हैं। ठीक? जाओ नहा कर थोड़ी देर सो लो, फिर हम बात करेंगे। ठीक?”


“नहीं, मैं पिए हुए नहीं हूँ। शायद थोड़ा सा नशे में हूँ।” करणों ने एक क्षण को अपनी निगाहें घुमाई।


“राजप्रतिनिधि तुम हमारे अच्छे पड़ोसी थे।” उसकी उदिग्नता पुनः बढ़ गई। “मुझे नहीं उम्मीद थी कि तुम भी इन हरामजादों के पक्ष में रहे होगे। तुम इन सबसे कतई बेहतर नहीं हो। क्या तुमने इनकी तरह उनका चीखना सुना था? क्या वह सब सुनना अच्छा लगा था?”


पेट्रस  ने अपना सिर हिलाया।


“मैं शहर से बाहर था। मैं उसे रोकने को कुछ नहीं कर सकता था। क्रांति चलती रहती है। यह बलिदान मांगती है।”


“यह क्रांति गंदगी का ढेर है। जब चीजें इस कदर बुरी हों तो एक बेवकूफ़ ही क्रांति की बात कर सकता है।” करणों चिल्लाया। पेट्रस  को भान हुआ कि उसने कुछ ग़लत ‌कह दिया था।


“करणों, क्या तुम्हे विविड, वह मोटा लड़का याद है?” वह करणों का ध्यान बटाने हेतु पुरानी दोस्ती को जगाने की कोशिश करता हुआ हँसा। करणों ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।


बस्तमी ने समय को टालने के लिए कुछ सोचने का प्रयत्न किया। संतरी पक्के मुस्लिम थे। रंगरूट अहमद पूरे दल को जुम्मे की नमाज के लिए मस्जिद तक ले गया था और बस एक सिविलियन प्रहरी को पहरे छोड़ दिया था। जब वह चाकू की ओर देख रहा था तो सोच रहा था कि क्या करणों द्वारा उस पर आक्रमण की दशा में चीखने का कोई फायदा होगा।


एल्कोहल से बनी धुंधलाहट करणों के मस्तिष्क में शोक और क्रूरता को उसके हृदय में घनीभूत करती हुई कम होने लगी थी। 


“मुझे रास्ता दिखाने की कोशिश मत करो, अंकल। अब मैं वह सैनिक नहीं हूँ जो तुम्हारी बकवास सुना करता था।” उसने अपने चेहरे की ओर संकेत किया। “अंग्रेजों ने मुझे बदल दिया। तुम लोग कहीं से भी उनसे बेहतर नहीं हो। तुम सब दूसरों को कष्ट उठाते देखना चाहते हो।”


वह रुक गया। उसका चेहरा लकड़ी के एक मुखौटे की भांति लग रहा था।


“मैं वापस लौट कर ख़ुश था। मैने तकलीफ़े़ झेली हैं। मुझे पता है कि निराश होना क्या होता है। मैने सोचा था मुझे शांति मिलेगी। पर शहर ने मुझे पराजित कर दिया। मैं अपने परिवार को पाना चाहता था।” शोक से उसका गला रूंध गया। “वे सब मुझे जीवित पा कर ख़ुश होते, भले ही अब मैं ऐसा दिखता हूँ।।”


अकस्मात वह पागलों की भांति रोने लगा। दुनिया उजाड़ लग रही थी। शब्द मुँह से अनायास निकल रहे थे। “इस सब की जगह मुझे एक नर्क मिला। मेरा  पूरा परिवार मर चुका है। घर धूल में मिल चुका है। तुमने यह सब क्यों किया? चलो ठीक है कि मेरे पिता कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारी थे। लेकिन यह शहर केवल इसके लिए समूचे परिवार को मार सकता था और उसके घर को ध्वस्त भी। और बाकी तुम सब बस खड़े हुए यह सब देखते रहे थे।”


पेट्रस ने‌ संवेदना में अपना सिर उठाया।


“मैं वह करणों नहीं हूँ जिसे तुम जानते थे। तुम्हें जल्दी ही पता चल जाएगा, हरामी क़ातिलो।” वह विषैले अंदाज में कहता रहा मानो शैतान ने उसकी जीभ पर नियंत्रण कर लिया हो। “मैं उन सब के मस्जिद जाने की प्रतीक्षा कर रहा था। मैने उनमें से एक की बंदूक ली। मैने उन्हें दिखाया था।” वह कहता रहा। “यह सब कितना मजेदार था। वे दया के लिए गिड़गिड़ा रहे थे। पहले वे एक के बाद एक गिरना शुरू हुए। फिर वे सब एकदम से ध्वस्त हो गए जैसे किसी तवे पर से कीट उछल रहे हों” वह राजप्रतिनिधि की ओर देख कर मुस्कुराया। “बिलकुल मेरे परिवार की भाँति। मैने अपना प्रतिशोध ले लिया।” भयानक हँसी उसके शुष्क कंठ में खड़खड़ायी।


सुयतमान की आँखों में अहंकार देख कर उसका चेहरा और काला हो गया। वह बहुत देर से धीरज रखे हुए था। “यदि तुमने अपना कर्तव्य निभाया होता कमांडर तो यह सब न घटित हुआ होता। तुम्हें अधिक ज़िम्मेदार होना चाहिए था।”


“मैं हूँ, अपनी अधिकतम क्षमता भर हूँ।” अधिकारी को अपनी उम्र और रैंक की तौहीन चुभ गई। “हमें यह दिखाना बंद करो कि तुम कितने बहादुर हो। मेरे विचार से तुम एक मस्तिष्कविहीन कायर हो। आओ, मुझे गोली मारो। तुम किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हो? केवल एक गुंडा ही किसी निहत्थे को डराता है,” उसने मज़ाक़ उड़ाया।


करणों ने गुस्से में उसकी ओर निशाना साधा।


मेजर शांति से प्रतीक्षारत रहा। इसके पूर्व कि बस्तामी करणों पर छलांग लगाता, पेट्रस  चिल्लाया, “करणों।” लगा जैसे करणों ने उसे सुना ही न हो। “ईश्वर के लिए यह सब रोको, मेरे बच्चे !” वृद्ध ने विनती की। “अपने सृजनहार को याद रखो !”


जब करणों ने गोली चलाई, पेट्रस  हथियार के सामने दौड़ आया। उसके कंधे का रक्त उसकी उंगलियों से टपकाने लगा था और उसने दुःख से युवा व्यक्ति की ओर देखा। उसके चेहरे के भाव एक तरह की मुस्कराहट में बदल गए जैसे कोई किसी शैतान बच्चे को देख कर मुस्कुराता है। 


करणों आत्मग्लानि से भर गया। उसने बहुतों को मारा था : मस्जिद से लौटते तीस सैनिकों को; दरवाजे पर सिविलियन प्रहरी को; और अब राजप्रतिनिधि पेट्रस, वह व्यक्ति जिसका इतने वर्षों तक वह सम्मान करता रहा था। उसे आश्चर्य हुआ कि उन सब ने क्या गलत किया था।


आँसू उसके गले में अटक कर एक पागल की चीख़ में बदल गए थे। वह बाहर की ओर भागा और उन्होंने गोली चलने की आवाज सुनी। जब पेट्रस  कुर्सी के पास फर्श पर गिरा तब उन्हें भान हुआ कि क्या घटित हो चुका था।


*शब्दार्थ - केन : बाइबिल के अनुसार आदम का बड़ा बेटा, नापाम : एक तरह का बम जो फटने पर आग लग जाती थी।


हैरी एवलिंग के अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित।



 

यह कहानी Gestapu नामक संग्रह की दस कहानियों में से एक है और मलेशिया पर इंडोनेशिया की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के आक्रमण के लिए मदद को भेजे गए  गुरिल्ला सैनिकों के दल के एक सैनिक की कहानी है।


श्रीविलास सिंह वरिष्ठ कवि, गद्यकार एवं अनुवादक हैं। प्रतिष्ठित पत्रिका ‘परिंदे’ का अवैतनिक संपादन।


कृतियाँ : कविता के बहाने, रोशनी के मुहाने तक (कविता); सन्नाटे का शोर (कहानी); आवाज़ों के आरपार, अँधेरों की खामोशी के बीच, निस्तब्ध विलाप, चेहरा दर चेहरा, लड़की और चिनार की प्रेम कथा, ताओ ते चिन्ह (लाओ त्से), पैगंबर (खलील ज़िब्रान), अफ़्रीका की समकालीन स्त्री कविता  (अनुवाद)।


ईमेल : sbsinghirs@gmail.com



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