top of page

दीपक सिंह की कविताएँ

  • golchakkarpatrika
  • Apr 18
  • 2 min read



फिलिस्तीन की माँओं को समर्पित :


1.


अभी साँस ले रही है ज़िन्दगी

स्वप्न के गर्भ में

अभी देखनी है

उसे यह क्रूर दुनिया

और मनाना है मातम

इस मरी हुई दुनिया पर


अभी अनजान है वह

बारूद और नफ़रत की भाषा से


असमान से बरसती है आग

थम जाती है ज़िन्दगी

बिखर जाता है स्वप्न

और टूटती है बचायी हुई उम्मीद


शाम की फरियाद में

ईश्वर सुनता है

बीते दिन का शुक्रिया और प्रार्थनाओं को रखता है ताक पर

फिर निराश लौट जाता है किसी अज्ञात घर में


एक घर जो पिछली रात हुआ है बर्बाद

बारूद की गंध फैली है आसमान ताकते कमरे में

एक स्पर्श जो छूता है उम्मीद के सपने

पार्श्व में बज रहा है―

बॉब डिलन


यह इंटरवल है―

कल क्षितिज रंगों से नहाएगा

फूल ताज़गी लिये जोर-जोर से हँसेंगे।


एक बच्चा दौड़कर गले लग रहा है अपनी माँ से

फिर नफ़रत के धमाके में गुम हो जाती है

वह आख़िरी तस्वीर।



2.


कहाँ से आती हैं बंदूक़ें

कौन बनाता है इन मिसाइलों को

आखिर कौन भरता है बारूद हमारी आत्मा में


वह शहर जो अभी-अभी बिखरा है

ये किसकी लाशें हैं जो बे-आबरू हैं

वे किसके लड़ाके थे जिन्होंने चलायी थी गोलियां


उन्हें नहीं फ़र्क़ पड़ता है इन सब बातों से

वे खेलते हैं बगीचे में अपने बच्चों के साथ

और पीते हैं कॉफी

अभी टहलते हुए निकल आएंगे अहाते में

और चूमेंगे अपनी पत्नी को इत्मीनान से

वे आश्वस्त हैं―

जितनी लाशें गिरेंगी किसी दूर मुल्क में

उतनी ही भरती जाएंगी उनकी

तिजोरियां!



3.


मेरे लिए यह दुनिया थोड़ी और मुश्किल हो गयी है

जबकि बच्चे मर रहे हैं कहीं दूर

और यहाँ मैं एक लड़की के प्यार में हूँ!


मैं उससे कुछ भी नहीं कहता―

प्यार का एक शब्द भी नहीं!

लेकिन वह जानती है मुझको 

और मेरे दिल पर हाथ रखती है!


उस रात जब मेरी नींद में बरस रही थी आग

तुम वहीं थीं―

मेरे बच्चों को बचाती हुई

और तब मैं मर गया था

तुम्हारी ज़ख्मी आत्मा को देखकर


और आज जबकि मेरी कविता मेरे आँसू 

ये सब कुछ

तुम्हारे लिए है

फिर भी तलाशना उस दर्द को जो एक माँ को मिला है!


4.


क्या वह मेरा घर नहीं है

वहाँ क्या मेरी माएँ नहीं रहतीं

माँ,

मैं नहीं बचा सकता तुम्हारे बच्चों को मिसाइलों से

तुम तो जानती हो―

कविता लिखने से कुछ भी नहीं बदलता

कुछ आँसू और सूख जाते हैं!


माँ,

इसे तुम मेरी कविता मत समझना

यह मेरा मृत्यु-संदेश है 

जिसे तुम पढ़ रही हो! 



 

दीपक सिंह युवा कवि-लेखक हैं। बिहार के सुपौल जिला में निवासरत। कृति-बहुमत, परिंदे, हिन्दवी, सदानीरा और हिन्दीनामा पर कविताएँ प्रकाशित। रज़ा युवा 2024 में शामिल। ईमेल : deepaksingh03jan@yahoo.com


Comments


bottom of page