नाओमी शिहाब नाए की कविताएँ
- Shivam Tomar
- Jan 3
- 3 min read
Updated: Jan 5

नाओमी शिहाब नाए की कविताएँ
अनुवाद : योगेश ध्यानी
इतनी ख़ुशी
यह जानना मुश्किल है कि
इतनी सारी ख़ुशी का क्या किया जाए
दुख के साथ कुछ होता है जिसे सहला सकें
एक घाव लोशन और कपड़े से देखभाल के लिए।
जब जगत तुम्हारे आस-पास होता है
तुम्हारे पास कुछ टुकड़े होते हैं उठाने के लिए
हाथ में थामने के लिए होता है कुछ
लेकिन ख़ुशी तैरती रहती है
इसे तुम्हारे द्वारा थामे जाने की ज़रूरत नहीं होती
इसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं होती।
ख़ुशी पड़ोस वाले घर की छत पर गाती हुई उतरती है
और जब चाहे अदृश्य हो जाती है।
तुम किसी भी हाल में ख़ुश होते हो।
यह तथ्य भी कि कभी तुम
एक सुन्दर पेड़ के मकान में रहते थे
और अब धूल और शोर भरी खदान में रहते हो
तुम्हें नाख़ुश नहीं बनाता।
हर चीज़ का अपना जीवन होता है,
यह भी जाग सकती है
काॅफी, केक और पके आड़ू की संभावनाओं से भरी हुई
और प्रेम कर सकती है उस फ़र्श को
जिसका बुहारा जाना बाक़ी है
और मिट्टी सने कपड़ों और टूटे रिकार्ड्स को भी....
क्योंकि इतनी सारी ख़ुशी को रखने की कोई जगह नहीं
तुम अपने कंधे उचकाते हो, अपने हाथ उठाते हो
और यह ख़ुशी तुमसे निकलकर
हर उस चीज़ में समा जाती है
जिसे तुम छूते हो।
तुम इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हो
तुम इसका श्रेय नहीं लेते
जैसे नहीं लेता रात का आसमान चाँद के लिए श्रेय
वह बस उसे थामे रहता है और बाँटता रहता है
और जाना जाता है, उसी के लिए।
मैं कैसे जान पाती हूँ एक कविता का पूरा होना?
जब तुम आहिस्ता से
एक कमरे का किवाड़ बन्द करते हो
तब कमरा समाप्त नहीं हो जाता
यह विश्राम में है। थोड़ी देर के लिए।
थोड़ी देर के लिए
तुम्हारे वहाँ न होने पर
प्रसन्न
अब इसके पास
अपनी सलेटी धूल की गेंदों को इकट्ठा
करने का समय है,
उन्हें फिर से कोनों में फेंकने के लिए
अब यह अपने अन्दर सिमटता है
शान्त और गौरवान्वित।
उसकी बाहरी रेखाएँ स्पष्ट हो जाती हैं।
जब तुम लौटते हो
तुम किताबों के ढेर को उठाकर
दूसरी जगह पर रख सकते हो,
गुलाब के पौधों के पानी को
ताज़े पानी से बदल सकते हो।
मुझे लगता है
तुम ऐसा अन्तहीन समय तक करते रह सकते हो।
पर वह नीली कुर्सी
उस लाल तकिये के साथ ही
सबसे सुन्दर दिखती है।
तो तुम भी उसे वहीं, वैसा ही छोड़ सकते हो।
कभी-कभी होता है कोई दिन
कभी-कभी होता है कोई दिन
जिससे तुम बहुत दूर चले जाना चाहते हो।
उसे अपने भीतर
एक द्वीप की तरह सिमटता हुआ
महसूस करना चाहते हो,
मानो तुम किसी नाव पर हो।
मैं हमेशा एक नाव पर होना चाहती हूँ।
तब, शायद ज़मीन को लेकर लड़ाइयाँ न हों।
उस दिन मैं महसूस करना चाहती हूँ
कि ऐसा कभी हुआ ही नहीं
जब अहमद को जला दिया गया था।
जब लोग मारे गए,
जब मेरे चचेरे भाई को गोली मारी गई।
वह दिन जिसमें कोई बन्दीगृह गया,
एक चमकता हुआ दिन नहीं है
मैं फिर से एक साफ़ मस्तिष्क पाना चाहती हूँ
उस बच्चे की तरह
जो खिड़की से आते प्रकाश को देखता है और सोचता है—
यह मेरा है।
कन्धे
एक आदमी बारिश में सड़क पार कर रहा है
संभल कर रखता हुआ कदम
दो-दो बार देखता हुआ उत्तर और दक्षिण की तरफ़
क्योंकि उसका पुत्र उसके कन्धे पर सोया हुआ है
किसी भी कार से उछले हुए छींटे
उस पर न पड़ जाएँ
न गुज़रे कोई भी कार
उसकी छाया के बहुत करीब से
इस आदमी के पास संसार का
सबसे संवेदनशील कार्गो है
लेकिन उस पर कोई निशान नहीं है
उसकी जैकेट पर कहीं नहीं लिखा—
"नाज़ुक, कृपया सावधानी से उठाएँ"
आदमी के कान उसकी साँस से भरते हैं
वह अपने भीतर लड़के के स्वप्न की गूँज सुनता है
हम इस संसार में रहने योग्य नहीं रहेंगे
यदि हम वह नहीं करेंगे
जो वह आदमी
अपने पुत्र के साथ कर रहा है
सड़कें और चौड़ी ही होंगी
और बारिश कभी भी अपना
गिरना बंद नहीं करेगी।
नाओमी शिहाब नाए मेरी प्रिय कवि हैं, खास तौर पर उनकी कविता कन्धे तो मेरी सबसे प्रिय कविताओं में से है। कुछ साल पहले मैंने भी इसका अनुवाद किया था जो शायद अनुनाद ब्लॉग पर आया था। मैं कैसे जान पाती हूँ एक कविता का पूरा होना? भी बहुत प्यारी सी कविता है। योगेश ध्यानी ने सुंदर अनुवाद किए हैं, उनका चयन भी बहुत अच्छा है। उन्हें बधाई और गोल चक्कर को उन कविताओं तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद।
यादवेन्द्र
बहुत अच्छी कविताएँ। बहुत सुंदर अनुवाद। ध्यानी जी को बधाई।