रति सक्सेना की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Feb 3
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Updated: Feb 4

चींटियां सधवा नहीं होती
माँ कहती थीं कि चीटियां सधवा होती हैं
मुझे मालूम नहीं माँ के विश्वास का आधार क्या था
क्या उन्होनें कभी चींटी के हाथों में
चूड़ियां देखीं, या पाँवों मे झांझरें
वे अक्सर पंक्ति में चुपचाप आती हैं,
जैसे कि माँ के समय की औरतें
भर अँधेरे, नदी नहान के लिए जा रही हों
माँ कहती थीं कि चीटियां सधवा होती हैं
माँ ने कबीर पढ़ा था, पृथ्वीराज रासो भी
क्या माँ को चुपके से कबीर ने बताया था,
कि चींटी के पग झांझर होती है?
पुजापे की चुटकी भर, वे चींटी के लिए
बचा कर ज़रूर रखा करतीं थीं
माँ को शायद मालूम नहीं था कि
चींटियां दाने अपनी रानी के
बच्चों के लिए ले जाती है, अपने लिए नहीं
वे किसी रानी चींटी की मज़दूर सेना का
हिस्सा मात्र होती हैं, सधवा नहीं,
जो पति के नाम माँग भर
बच्चों के लिए मन्नत माँगती हों
चींटियां सधवा नहीं होती
सभी सधवा चींटियां नहीं।
डिब्बे वाले
मैंने डिब्बे वालों को देखा था, मुम्बई के रेलवे स्टेशनों पर
सफ़ेद पायजामा, सफ़ेद क़मीज़, सिर पर लकड़ी की छाबड़ी
वे ले जाते थे, भूख को यहाँ से वहाँ, वे स्कूल नहीं गए थे
गुणा भाग भी नहीं सीखा, लेकिन हार्वर्ड उन पर शोध करती थी
जब बाढ़ आई मुम्बई में, ये डिब्बे वाले थे
लंच बाॅक्स पिक्चर बन कैसे जाती यह जो नहीं होते
वे ऐसे ही लुप्त हो गए, जैसे हो गए थे मिल मजदूर
जब कि कुली फिल्म का हीरो, आज शहंशाह बना बैठा है
मैं अक्सर सोचती हूँ कि क्या करते होंगे ये डिब्बे वाले?
बिना किसी आमदनी के क्या खाते होंगे?
उनकी क़मीज़ कितनी मैली हुई होगी?
सबकी भूख का हिसाब रखने वाले, अपनी भूख को
कैसे दबा कर रख पाते होंगे?
एक बीड़ी को ज़मीन पर तीन बार रगड़ते हुए
इतिहास भी नहीं बन पाए,
कैसे रहते होंगे डिब्बे वाले?
168 घण्टे प्रति सप्ताह
मैं उन लोगों से घिरी हूँ
जो सोचते हैं कि हर सुबह ईश्वर
सुबह उठते ही, दंत मंजन किए बिना
स्नान ध्यान के बिना, उनके और
दूसरों के हिस्से का भाग्य लिख देगा
फिर वे अपने आप से झगड़ते हैं कि
पड़ोसी का भाग्य उनसे ज़रूर बेहतर है
जबकि चढ़ावा मेरा अच्छा था
वे अमेरिका जाते हैं तो मन्दिर तलाशते हैं
उनके देव देशों के समय के अनुसार
सोते-उठते हैं और काम करते हैं
जब वे सोते हैं तब भी
उनके देव काम करते हैं
यानी कि 168 घण्टे प्रति सप्ताह
फिर भी, अमेरिका के जंगलों की आग
अब भी जल रही है
देवता के जलते ब्रेन की तरह
दाग
गैस के चूल्हे को कपड़े से पोंछती हुई वह बोली
मुझे भी अच्छा लगता है सब कुछ साफ़ रखना,
घर, देह और मन
वह है कि दाग लगाना ही जानता है
देह पर,
मन पर,
यहाँ तक आत्मा पर
मैं पोंछती रह जाती हूँ
दाग छूटते नहीं
अबोधपने में सोचा था
दाग ही
साथ की निशानी है
उसने दागा,
जब माँ दूसरे कमरे में
दर्द से कराह रही थी
टिटहरी चीख रही थी
दादुर अनहोनी से
चुप्पा से गए थे
मेरा मन घायल कबूतर
फड़फड़ा रहा था
मैंने कहा बस,
और मैंने दागों से दुश्मनी कर ली
तुम्हारी मुस्कुराहट?
दूध में केसर
हाँ, बस यही है
जिस पर मैंने कभी कोई दाग
ही नहीं पड़ने दिया
नीले काग़ज़ पर गुलाबी सपना
एक नीली कोठरी में, बदरंग डेस्क पर झुका
वह उकेर रहा था, नीले काग़ज़ पर गुलाबी सपना
जिसकी दौड़ती धमनियां पाँवों में पैंजनियां बंधी थी
उसके हाथों की नीलीं नसें, आँखो के गुलाबी डोरों से
रुक, रुक कर बतियातीं, तो काग़ज़ रुक कर साँस लेने लगता
मौक़ा मिलते ही वक़्त दौड़ने लगता नीले काग़ज़ पर
रची सफ़ेद लकीरों पर, कुछ गुनगुनाते मुस्कुराते हुए,
उसका काग़ज़ थोड़ा मैला हुआ, सपना भी सलेटी
वक्त के पाँवों में घन्टियां बंधीं, आँखे थकीं
तमाम कालिखों ने घुसपैठ कर ली तो मैंने
फिर उस नीली कोठरी की ओर देखा,
जहाँ ना वह था, ना ही उसके हाथों की नीलीं नसें
इस तरह एक शहर सपने में ही शहीद हुआ।
(मेरे पिता के बड़े भाई नक्शा नवीस थे, जिनका गुलाबी शहर का नक्शा बनाने में सहयोग था। उन्हें याद करते हुए।)
रति सक्सेना कवि, आलोचक, अनुवादक और वेद शोधिका हैं। हिन्दी में 7, अँग्रेज़ी में 6 और मलयालम में एक (अनूदित) पुस्तक के साथ एक द्विभाषी कविता पुस्तक प्रकाशित है। विदेश में आठ पुस्तकें प्रकाशित हैं— इतालवी, अस्टोनियन, वियतनामी, सरबेनियन, स्पेनिश, आइरिश, तुर्की भाषाओं में। बालामणियम्मा पर एक आलोचनात्मक पुस्तक, अय्यप्प पणिक्कर पर एक मेमोर (अँग्रेज़ी में), 5 यात्रा वृत्तान्त छप चुके हैं। अथर्ववेद को आधार बना कर लिखी पुस्तक "ए सीड आफ माइण्ड - ए फ्रेश अप्रोच टू अथर्ववेदिक स्टडी" है जिसके लिए उन्हे "इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र" फेलोशिप मिली। कविता और गद्य की 15 पुस्तकों का मलयालम से हिन्दी में अनुवाद और वैश्विक भाषाओं की 8 पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया है। जिसमें से अय्यप्पा पणिक्कर की पुस्तक के अनुवाद के लिये उन्हें वर्ष 2000 में केन्द्रीय साहित्य अकादेमी का अवार्ड मिला। अंग्रेजी में पोइट्री थेरापी पर दो पुस्तकें हैं। उनके रचना समग्र के तीन खंड प्रकाशित हो रहे हैं।
पुरस्कार : अनुवाद पुरस्कार, साहित्य अकादेमी (2001), SBI का कविता पुरस्कार (2005), Naji Naaman international Award for literary work (2016), Fellowship by Indira Gandhi National Centre for Arts in (2004-5), DJS Translation award for Chinese poetry (DJS is the acronym in Chinese for (Emily) Dickinson, the American woman poet) (2018), 1st edition of the International Poetry Festival of Crete, (Greece) Prize for poetry. (2019), राजस्थान पत्रिका का वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कविता का पुरस्कार (2019), राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरां पुरस्कार (2023), केरल साहित्य अकादमी का सर्वकालीन सम्मान (2023)।
ईमेल : editorkritya@gmail.com
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